लखनऊ।बेसिक शिक्षा विभाग में 15 जून से स्कूल खोल दिए गए हैं और इस भीषण गर्मी में छोटे-छोटे बच्चो को बैठा कर पढ़ाने का आदेश देकर शिक्षको को 16 जून से विद्यालय खोलने को मजबूर किया गया ।

          आए दिन कभी बच्चों के सर में दर्द तो कहीं पेट में दर्द और उल्टी के साथ बुखार आने की समस्या का सामना छोटे बच्चों को करना पड़ रहा है। कुल उपस्थिति का एक तिहाई बच्चे भी विद्यालय में उपस्थित नहीं हो पाते उनके परिवार के सदस्य बच्चों की बिगड़ती तबीयत से अलग परेशान हो रहे हैं।

       बताते चलें शायद शिक्षा विभाग या कहें बेसिक शिक्षा के इतिहास में भी कभी जून में विद्यालय खोलकर बच्चों को पढ़ाने का प्रावधान नहीं किया गया था। शिक्षा नीति बनाने वाले अफसर शाह जिन्हें नियम और कानून कई ऐसी युक्त ठंडे बड़े कमरों में बैठकर बनाने और उसे क्रियान्वित करने का अंतर नहीं पता। ऐसा लगता है छोटे बच्चों के भविष्य और उनके स्वास्थ्य के नजरिए को ध्यान में रखें बिना ही यह आदेश पारित कर दिया गया। भले ही विद्यालय का समय 7:30 से 12:30 रखा गया हूं पर यदि इस महीने टेंपरेचर का अवलोकन किया जाए तो भरी दुपहरी छोटे बच्चे बिना पंखे के कैसे पढ़ाई करते होंगे इसकी कल्पना की जा सकती है।

   जून का महीना पूरे वर्ष का सर्वाधिक गर्म महीना होता है और ऐसे में कक्षा 1 से लेकर 8 तक के बच्चों को तपती धूप में उमस भरे कमरों में बैठाकर बीमारियों को दावत देना नहीं तो और क्या है? इतनी गर्मी में क्या पढ़ा है वह बच्चों को समझ में आ पाएगा स्कूलों में लगे हुए टंकियों में पीने का पानी उबल जाता है और बच्चे उसे पीने को मजबूर हो जाते हैं।अक्सर ग्रामीण परिवेश के विद्यालयों में लाइट नहीं रहती बिना पंखे के बच्चों का हाल बेहाल और शिक्षकों की पढ़ाई के सिवा अन्य कार्य में ड्यूटी लगाकर उन्हें आधार सत्यापन तो कभी डीपीटी भी तो कभीअन्य शिक्षणेत्तर कार्यों में लगा दिया जाता है जिससे पढ़ाई सुचारु नही हो पा रही है।

      पूर्व चल रही शिक्षा व्यवस्था के तहत 1 जुलाई से विद्यालय खुलने का आदेश पुनः पारित किया जाना चाहिए ताकि बच्चों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ रोका जा सके और शिक्षकों को पूरी उर्जा से 1 जुलाई से नए सत्र में बच्चों को पढ़ाने की रौनक को वापस लौटाई जा सके। यदि भीषण गर्मी और लू लगने से किसी शिक्षक किया शिक्षार्थी की मृत्यु होती है तो इसकी जिम्मेदारी निश्चित रूप से कोई लेने को तैयार नहीं होगा।

शिक्षा व्यवस्था के नीति निर्माता शिक्षक संगठन तथा सामाजिक संगठन छात्र शिक्षक और शिक्षा व्यवस्था के हित में कृपया ध्यान दें।

*स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का वास होता है*