जंघई। ब्लॉक प्रतापपुर में एक ऐसा गांव है जिसका कोई नाम नहीं है, नक्शे में चारों तरफ से चकरोड है लेकिन इस गांव में जाने के लिए एक भी रास्ता नहीं है यह गांव नेदुला ग्राम पंचायत की सीमा के तहत आने वाले शेरपुर गांव से लगभग एक किमी मीटर दूर है। गौरतलब है कि 40 साल पहले इस गांव में तीन तरफ से आने वाले चकरोड से जुड़ा हुआ था, एक चकरोड पूरब दिशा से था, दूसरा पश्चिम और तीसरा उत्तर दिशा में जौनपुर जिले के तहत आने वाले गोपालापुर गांव से जुड़ा हुआ था, इन सभी चकरोड को दबंगों ने अपने खेत में मिलाकर जोत लिया, जिसकी वजह से उक्त गांव के लिए चकरोड सिर्फ सरकार के नक्शे की शोभा बढ़ाने तक ही रह गया हैगर्भवती महिलाओं का बुरा हाल हो जाता है। मुंबई से आए एक राष्ट्रीय अखबार में उप संपादक राजित यादव ने बताया कि उनका परिवार उक्त गांव में रहता है, इसलिए गांव में अक्सर आना जाना होता है, यादव ने बताया कि हाल ही में उनके चाचा का स्वर्गवास हुआ, जिनके शव को ले जाने के लिए एंबुलेंस और अन्य वाहन गांव में नहीं पहुंच पाई, जिसकी वजह से शव को रात भर घर में रखना पड़ा यादव ने बताया कि रास्ता नहीं होने की वजह से मरीजों और गर्भवती महिलाओं को किसी तरह पास के गांव में ले जाया जाता है फिर वहां से वाहन से प्रयागराज की अस्पताल में ले जाया जाता है बारिश के दिनों में मरीज और गर्भवती महिलाओं का बुरा हाल होता है नक्शे के अनुसार चकरोड बनाने की बजाए उसे कमजोर लोगों के खेत में बनाने के लिए प्रधान और लेखपाल पर दबंगों द्वारा दबाब बनाया जाता है, जिसकी वजह से कई लोगों ने धारा 24 के तहत तहसीलदार से गुहार लगाई है, लेकिन उनकी फाइल 3 साल से दबी हुई है, जिसकी वजह से चकरोड का भूत भागने का नाम नहीं ले रहा है। यादव का कहना है कि यदि अधिकारी चाहें तो अपने अधिकार का उपयोग करके नक्शे के आधार पर उक्त समस्या को दूर कर सकते हैं अधिकारियों की इच्छाशक्ति से उक्त गांव को चकरोड से जोड़ा जा सकता है, गांव वालों के लिए अधिकारी ही संकट मोचन बन सकते हैं।